Controversy over New Definition of Aravalli Hills: Explained in Simple Terms
अरावली पहाड़ियाँ भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक हैं और पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। हाल ही में अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को लेकर एक बड़ा विवाद सामने आया है, जिसने पर्यावरणविदों, छात्रों और नीति-निर्माताओं के बीच गंभीर बहस छेड़ दी है।
यह मुद्दा न केवल पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा है, बल्कि शहरीकरण, खनन और कानूनी व्याख्या जैसे विषयों को भी प्रभावित करता है।
अरावली पहाड़ियाँ: संक्षिप्त परिचय
अरावली पर्वत श्रृंखला गुजरात से लेकर राजस्थान और हरियाणा होते हुए दिल्ली तक फैली हुई है। यह क्षेत्र रेगिस्तान को फैलने से रोकने, भूजल संरक्षण और जैव विविधता बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है।
इसी कारण सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न पर्यावरण कानूनों के तहत अरावली क्षेत्र को विशेष संरक्षण प्राप्त है।
नई परिभाषा को लेकर विवाद क्यों?
विवाद की जड़ है “अरावली क्षेत्र की नई व्याख्या”, जिसमें पहाड़ी क्षेत्र की पहचान को केवल ऊँचाई, ढलान या राजस्व रिकॉर्ड तक सीमित करने की बात सामने आई है।
आलोचकों का मानना है कि इस नई परिभाषा से बड़े इलाके अरावली संरक्षण से बाहर हो सकते हैं, जिससे निर्माण और खनन गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।
पुरानी बनाम नई परिभाषा: मुख्य अंतर
| बिंदु | पुरानी परिभाषा | नई परिभाषा (विवादित) |
|---|---|---|
| आधार | भूगोल, वन क्षेत्र, पारिस्थितिकी | राजस्व रिकॉर्ड, ऊँचाई मानदंड |
| संरक्षण दायरा | विस्तृत | सीमित होने की आशंका |
पर्यावरणविदों की आपत्ति
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि अरावली को केवल कागजी रिकॉर्ड से परिभाषित करना वैज्ञानिक दृष्टि से गलत है। पहाड़ियाँ समय के साथ क्षरित होती हैं, जिससे उनकी ऊँचाई कम हो सकती है, लेकिन उनका पर्यावरणीय महत्व खत्म नहीं होता।
नई परिभाषा से वन्यजीव आवास, जल स्रोत और हरित आवरण को गंभीर खतरा हो सकता है।
सरकार का पक्ष क्या है?
सरकारी पक्ष का तर्क है कि स्पष्ट और मापनीय परिभाषा से कानूनी अस्पष्टता कम होगी और विकास परियोजनाओं में अनावश्यक रुकावट नहीं आएगी।
उनका कहना है कि नई परिभाषा भूमि रिकॉर्ड को व्यवस्थित करने और प्रशासनिक निर्णयों को सरल बनाने में मदद करेगी।
शहरीकरण और रियल एस्टेट पर प्रभाव
अरावली क्षेत्र दिल्ली-NCR जैसे तेजी से बढ़ते शहरी इलाकों के पास स्थित है। यदि नई परिभाषा लागू होती है, तो निर्माण गतिविधियाँ बढ़ सकती हैं।
आलोचकों के अनुसार इससे प्रदूषण, जल संकट और तापमान वृद्धि जैसी समस्याएं और गंभीर हो सकती हैं।
कानूनी और न्यायिक पहलू
अरावली संरक्षण से जुड़े कई मामले पहले ही न्यायालयों में विचाराधीन रहे हैं। नई परिभाषा से कानूनी विवाद और बढ़ने की आशंका है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी भी नई व्याख्या को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेशों और पर्यावरण कानूनों के अनुरूप होना चाहिए।
परीक्षा की दृष्टि से क्यों महत्वपूर्ण?
अरावली पहाड़ियों से जुड़ा यह विवाद UPSC, State PCS और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यह टॉपिक पर्यावरण, भूगोल, शासन और करंट अफेयर्स—चारों को जोड़ता है, जिससे प्रश्न बनने की संभावना अधिक रहती है।
निष्कर्ष
अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को लेकर विवाद केवल शब्दों का नहीं, बल्कि विकास बनाम पर्यावरण संरक्षण की सोच का टकराव है।
भविष्य में संतुलित नीति की आवश्यकता है, जो पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ विकास की जरूरतों को भी ध्यान में रखे। छात्रों के लिए यह विषय समझना न केवल परीक्षा, बल्कि जिम्मेदार नागरिक बनने की दृष्टि से भी बेहद जरूरी है।
